सतनाम धर्म

सतनाम धर्म - भारतीय धर्मो में सतनामधर्म का पवित्र व अनुपम स्थान है, सतनाम धर्म के अनुयायी को सतनामी कहा जाता है। सतनाम धर्म की खोज सन् 1756 में जन्मे सतनामी समाज के प्रथम गुरू संत शिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी ने किया। बाबाघासीदास जी अपने समय के भारतीय समाज में व्यापत कुप्रथाओं, अन्धविश्वासो, छुआछूत, उच्च-निच के भेदभाव, जर्जर रूढि़यो व पाखण्डो को दूर करते हुए जन साधारण धर्म के ठेकादारो, जमीदारो, पण्डो, पीरो व फकिरो आदि के चुगंल से मुक्त कराते हुए सत्य,अहिंसा,क्षमा, दया, पे्रम, करूणा, सेवा, परिश्रम, परोपकार व भाईचारा की मजबूत नीव पर सतनामधर्म की स्थापना किया। सतनामधर्म ही मानव धर्म है।
गुरू बाबाघासीदास जी का मुख्य उपदेश के अनुसार सत् ही नाम है,नाम ही सत् है। सत् ही सेवा,करूणा, चैतन्य,पे्रम,संयम,शील,चरित्र आदि का प्रतिक है सत्य ही मानव का आभूषण व मनखे मनखे एक समान है। सतनामधर्म को विश्वपटल पर फैलाने पुज्यनीय संतशिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी के छटवे वंशज श्रद्वेय जगतगुरू रूद्रकुमार जी सतनामधर्म, धर्मगुरूओं के जीवन परिचय, गरूसंदेश व कार्यो, सतनाम आंदोलन, सतनामी समाज, सतनामी जाति, सामाजिक-धार्मिक रितिरिवाज, सतनाम गुरूद्वारा, सामाजिक उत्थान, दीक्शा, सहित अनेको विषयो पर प्रमाणित लेख प्रस्तुत कर ऐतिहासिक व शास्वत कार्य किया है। आज वर्तमान में कुछ समाज व धर्म विरोधी फर्जी साहित्यकार,लेखक,कवि व रचनाकारो के द्वारा बिना किसी जानकारी या अधूरी जानकारी के ही अपने मनगढ़त ढंग से गुरू,धर्म व समाज के विषय में मिथ्या जानकारी प्रस्तुत कर समाज को बाटनें का प्रयास कर रहे है। ऐसे समय में पुनः पुज्यनीय संतशिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी के छटवे वंशज श्रद्वेय जगतगुरू रूद्रकुमार जी लोगो को सतनाम का बोध कराने व संतसमाज को एकता एवं सही दिशा की ओर मार्गदर्शन प्रदान कर रहे है।

सतनाम धर्म की मूल मान्यताये

1. गुरू घासीदास जी सतनामधर्म के संस्थापक,उन्नायक व पुज्यनीय पुरूष है, संसार में संतशिरोमणी,गुरू व बाबा के रूप में व्यख्यात है।
2. सतनामधर्म में सत्य का मान है क्योकि सत्य से बढ़कर संसार में कोई अन्य धर्म नही है।
3. सतनामधर्म का प्रतीक पवित्र जैतखाम,श्वेतध्वज तथा गुरूद्वारा है।
4. सतनामधर्म में सृष्टिकर्ता ही सतपुरूष है जो सर्वत्र व्यापत है।
5. सतनामधर्म में समाज व गुरू को न्यायकर्ता माना जाता है।
6. सतनामधर्म में श्रीफल व सेतपूजा का रिवाज है।
7. सतनामधर्म में सभी मानव को एक समान माना है,वर्ण व्यवस्था और जाति-पाति पर विश्वास नही करता।
8. सतनामधर्म गुरू,संत,साधु व माता पिता का सम्मान करता है।
9. सतनामधर्म व्यक्तियों को स्वतंत्रता,समानता व राष्टीयता का अधिकार प्रदान करता है।
10. सतनामधर्म व्यक्ति के त्याग,तपस्या और बलिदान का सम्मान करता है।
11. सतनामधर्म समस्त प्राणियों के प्रति प्रेम,दया व अहिंसा की भावना रखता है।
12. सतनामधर्म गुलामी का विरोध व रूढि़वाद,अनैतिक परम्परा, अंधविश्वास के भ्रमजाल का खण्डन करता है।
13. सतनामधर्म रंगभेद, छुआछूत, जातिपाति, देवी-देवता व अवतारवाद में विश्वास नही करता है।
14. सतनामधर्म गुरू घासीदास जी के उपदेशों पर विश्वास तथा हिंसा का विरोध करता है।
15. सतनामधर्म अन्य धर्मो के सत्य वचनो का आदर करता है।
16. सतनामधर्म सत्य,पे्रम, न्याय, करूणा, मैत्री, समता और विश्व बंधुता में विश्वास करता है।
17. सभी दुख-समस्याओं का समाधान व मानव का सर्वागिण विकास सतनामधर्म में है ।
18.सतनामधर्म भागयवाद पर भरोसा नही करता, देश के संविधान एवं नियम-कानून का उचित सम्मान करता है।
19. सतनामधर्म में महिलाओं को पुरूषो के समान समस्त सामाजिक,धार्मिक,वैचारिक अधिकार प्राप्त है।
20. सतनामधर्म के अनुसार सत्यपुरूश ने कोई भी जाति नही बनायी है मनुष्यो ने स्वय जाति का विधान रचा है,सतनाम धर्म को कोई भी जाति के व्यक्ति अपना सकता है। वैवाहिक संबधो व अन्यत्र कारणों से सतनामधर्म में शामिल हुए व्यक्ति के साथ समाज समतापूर्वक व्यवहार किया जाता है।

सतनाम धर्म की पहचान

संत शिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी ने सतनाम धर्म की सात पहचान बताये है व सात पहिचान का पालन करनें वाला सतनामी है।
1.गुरू - सतनामधर्म के अनुसार भारत सहित पूरे विश्व में सतनामी समाज गुरूप्रधान समाज है। गुरू समाज के मार्गदर्शक, आदेशक, निर्देशक, नियंत्रक व संचालक है। समाज में गुरू का स्थान सर्वोच्च व पुज्यनीय है। समाज में किसी भी प्रकार के नियम/निर्णय हेतु गुरू का मत अंतिम व सर्वमान्यहोता है।
2. जैतखाम - पवित्र जैतखाम/विजयखाम/ गुरू बाबा घासीदास जी का अलिखित संविधान है, जैतखाम प्रकृति के हवा जल, अग्नि, पृथवी व आकाश पंचतत्व का बोध कराता है। जैतखाम सतनामधर्म के अनुयायी सतनामी समाज का पहचान है जैतखाम जो इक्कीस हाथ लंबाई जिस पर तीन हूक व पाॅच हाथ डण्डा में सफेद कपड़े का झण्डा (पालो) प्रतिवर्श में पर्व पर चढ़ाया जाता है। जैतखाम गुरू की आज्ञा व समाजिक प्रस्ताव कर समाज के चैक /चैराहा या गुरूद्वारा परिसर में गड़ाया जाता है। पवित्र जैतखाम समता,स्वतंत्रता,बंधुता,न्याय व जैतखाम में लगे तीन गुजर प्रेम,दया करूणा तथा पाॅच हाथ का डण्डा पंचशील,पचंतत्व,पाच नाम एवं सफेद झण्डा शान्ति का प्रतिक है। जैतखाम में पालो चढ़ावा प्रतिवर्ष 18 दिसम्बर गुरू पर्व को गुरूवंषज व गुरू के प्रतिनिधि राजमंहत,दीवान,भण्डारी या सामाजिक कार्यकर्ता के द्वारा चढ़ाया जाता है।
3. गुरूगद्धी- सतपुरष अर्थात सतनामपिता उस परमपिता का नाम है,जिसके द्वारा इस संसार की रचना हुई है। सत्य ही सतपुरष है,सतपुरष ही सत्य है। सतनामधर्म के अनुयायी उसी सतपुरष/गुरू के लिए आसन गद्वी लगाया जाता है । आसन गद्वी पुजा एक पाटे की पिढ़ली पर सफेद वस्त्र बिछाकर श्वेत जनेऊ, कण्ठीमाला रखकर सुपारी, नारीयल, लौग, लायची व बंगला के पान भेट किया जाता है। आसन के निचे खड़ाऊ रखकर प्रतिवर्ष में पर्व पर आसन गद्वी लगाया/पलटा जाता है।
4. जनेऊ - सतनामधर्म में जनेऊ सतनामी समाज के पुरूषो को सतनाम पुजा/कथा/यज्ञ के उपरांत सतनामसुत्र जनेऊ सात गांठ व नौ ताग का बाये कंधे से दाई ओर गुरू घासीदास की जाप करके साहेब गुरू सतनाम पाच गुरू के पाँच नाम से धारण करना चाहिए। जनेऊ धारण विवेक, धैर्य व व्रतबंधन का प्रतिक है।
5. कण्ठीमाला - गुरूगद्वीनसीन जगतगुरू जी के द्वारा समाजजनो को समाजिक पदो के कर्तव्य निर्वाहन व गुरूदीक्शा के समय कंठीमाला गुरू घासीदास की जाप करके साहेब गुरू सतनाम पाच गुरू के पाँच नाम से पहिनातें है। कण्ठी सत्य की भक्ति की प्रतिक है।
6.तिलक - सतनामधर्म के अनुयायी सतपुरष,गुरू बाबाघासीदास व पवित्र जैतखाम की आरती मंगल कर सभी प्रकार के सामाजिक धार्मिक कार्यो में महिला व पुरूष सफेद चंदन की तिलक अपने मस्तक में साहेब गुरू सतनाम पाच गुरू के पाँच नाम से लगाते है। तिलक सतनामधर्म, गुरू व सतनामी समाज के प्रति व्यक्ति के आस्था का प्रतिक है।
7.अमृत - सतनामधर्म में गुरू बाबाघासीदास जी नें सुख-दुख में अमृत जल पान का व्यवस्था दी है। आज भी गुरू वंषज सत्य का ध्यान कर,सत्यपुरूष/गुरू बाबाघासीदास जी के आज्ञा को पाकर संत समाज को साहेब गुरू सतनाम पाच गुरू के पाँच नाम से अमृत जल पान कराते है।

सतनाम धर्म की प्रमुख ऐतिहासिक स्थल - सतनाम धाम

गिरौदपुरीधाम - गिरौदपुरीधाम सतनाम धर्म के मानने वालों के लिए पवित्र स्थल है क्योकि इस पावन धरा में सतपुरूष संतशिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी का जन्म 1756 ई.हुआ था। गिरौदपुरी कसडोल तहसील जिला,बलौदाबाजार में प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरती विशाल पहाड़,सघन वन,जीवनदायनी जोक नदी व गुरू बाबाघासीदास के महिमा को प्रमाणित करते हुए सतनाम की सुगंध फैलाते स्थित है, गिरौदपुरी गुरू बाबा का तपोभूमि के रूप में विश्वविख्यात है, गुरू बाबाघासीदास को सतनाम का बोध छाता पहाड़ में तपस्या करने से हुआ,सतनाम रूपी अमृत को पाकर अनेको चमत्कारिक कार्य कर सतनाम की महिमा दिखाए है।

गुरू बाबाघासीदास के सतनामवाणी,विचार,संदेश,जीवनचरित्र,सतकार्यो व सतनामधर्म की यश किर्ती को संसार में अजर-अमर बनाने गुरू बाबाघासीदास जी के चैथा वंशज गुरूगोसाई अगमदास जी के द्वारा सन् 1935 में गिरौदपुरी मेला का शुभारम्भ किया गया। गिरौदपुरीधाम का मेंला का संचालन गुरूबाबा अगमदास जी ने सन् 1954 तक तत्पश्चात ममतामयी मिनीमाता व राजराजेश्वरी करूणा माता संयुक्त रूप से सन् 1960 तक उसके बाद से राजराजेश्वरी करूणा माता के संरक्षण में प्रतिवर्ष फागुन शुक्ल पंचमी,छट व सात को तीन दिवसीय एतिहासिक गुरूदर्शन मेंला लगता है जहा पर सतनामी समाज के साथ ही सभी धर्मो के लोग देश विदेश से 50 लाख से अधिक श्रद्वालु गुरूदर्शन के साथ बाबा जी के जन्म स्थान, सफुरामठ, छातापहाड़, बाघमाड़ा, अमृतकुण्ड, चरणकुण्ड ,पचकुण्डी, विशालकाय गगनचुंबी जयस्तंभ व जोकनदी आदि पुज्यनीय दर्शनीय स्थल का प्रतिदिन लाभ लेते है। सतनामधर्म व गुरू के प्रति आस्था रखने वाले श्रद्वालुओ के द्वारा कर नापने वालो की लंबी कतार देख लोग आशचर्य चकित हो जाते है। गुरूदर्शन मेंला में भक्तो की बढ़ती हुई सख्या को देखते हुए उनके लिए समुचित व्यवस्था जैसे पानी, सड़क, बिजली, स्वास्थ्य,आवास आदि मुलभूत सुविधाओं को लेकर 1976 में गुरू व राजमहंतो एवं समाज के द्वारा मेंला में शासन की सहयोग की आवश्यकता महसूस की गई। तत्कालीन म.प्र.शासन के द्वारा समाज के आग्रह को स्वीकार करने के पश्चात राज्यपाल के आदेशानुसार सन् 1976 में ही संत गुरू घासीदास मेंला व्यवस्था समिति का गठन कर लिया गया। समिति में राजमंहतो व सर्ववर्गीय सदस्यों की नियुक्ति की गई।समिति का सयोंजक कलेक्टर, नामिनि स्थानीय अधिकारी को बनाया गया।

आज वर्तमान में गुरू बाबाघासीदास जी के चैथा वंशज गुरूगोसाई अगमदास जी के सुपुत्र जगतगुरू विजयकुमार जी मेंला समिति के अध्यक्ष है। जिनके मार्गदर्शन में गिरौदपुरीधाम का मेंला निरंतर व्यवस्थित व विकास की ओर आगे बढ़ते अग्रसर है। गुरूधाम गिरौदपुरी में हर साल गुरूदर्शन पर्व पर लगने मेंला सतनामी समाज का सबसे बड़ा अलौकिक उत्सव है सत्य निष्ठा व सर्मपण की भावना से गुरूदर्शन का लाभ लेने देशभर के कोने कोने से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, चंडीगढ़, उत्तरप्रदेश, हरियाणा,पंजाब, आसाम, पश्चिमबंगाल,उड़ीसा,बिहार,दिल्ली के अलावा नेपाल, इग्लैण्ड,चीन,जापान व अमेरिका से भी बड़ी सख्या में सतनामी समाज के अलावा सभी धर्मो के मानने वाले लोग आते है। मेंला में तीनों दिवस सतनामधर्म,सतनामी समाज के परम पुज्य गुरूगोसाई,आदेशक निर्देशक,सचेतक,संचालक श्रद्वेय श्री जगतगुरू विजयकुमार जी, पुज्यनीय जगतगुरू रूद्रकुमार जी, पुज्यनीय गुरू रीपुदमन जी व राजराजेश्वरी कौशल माता जी अपने संतो को दर्शन व आशीष प्रदान करते है।