सतपुरष / सतनाम / परमपिता

सतपुरष अर्थात सतनामपिता उस परमपिता का नाम है, जिसके द्वारा इस संसार की रचना हुई है। सृष्टि के आदि में केवल सत्य था, वर्तमान में सत्य है और भविष्य में भी सत्य रहेगा। सत्य ही सतपुरष है,सतपुरष ही सत्य है। सतनाम से ही संसार का सृजन हुआ है, सतनाम विभिन्न रूपो में सर्वत्र विद्यमान है,संसार के रग रग में सर्वव्यापक है। सत पुरूष परमात्मा से जगत की उत्पत्ति हुई है इसलिए सत्य की आत्म तत्व की उपासना करनी चाहिए। सतनाम इस संसार में बीज रूप में कण कण में और प्रत्येक प्राणियो में निराकार चेतना शक्ति के रूप में विराजमान हैं उससे बड़ी शक्ति दुनिया में कोई नही है सतनाम के आगे सभी शक्तिया हार जाती है।सतनाम को मानने वाला जीव उसी के समान शक्तिषाली हो जाता है। सतनाम ही संसार का सार है। सत ही धर्म,तप योग,यज्ञ और सनातन आत्मब्रम्ह सत्य है। सत्य में ही सब प्रतिष्ठत है। लाख अष्वमेंघ यज्ञो के फल व सत्य को एक तराजू से तौलने पर सत्य का पलड़ा भारी पड़ेगा।

गुरू

गुरू यह शब्द परम गुरू के लिए आया है, गुरू का अर्थ सभी ज्ञान से भारी अर्थात महान है। पूर्ण ज्ञानी चेतन्य रूप पुरूष के लिए गुरू शब्द का प्रयोग होता है, उसके ही स्तुति की जाति है। पुज्यनीय गुरू बाबा घासीदास जी, गुरू अमरदास जी, गुरू बालकदास जी, गुरू आगरदास जी, गुरू अड़गडि़हादास जी, गुरू साहेब दास, गुरू अगरमन दास जी, गुरू अगमदास जी,जगतगुरू विजयकुमार जी, जगतगुरू रूद्रकुमार जी आदि सतनामधर्म के गुरू गद्वीनशीन जगतगुरू है।

ज्ञान लोगो को भौतिक, बौधिक, सामाजिक, धार्मिक, राष्टीय व मानवता के वैज्ञानिक, अनुभव व सैधांतिक बातो व क्रिया कलापों के विभक्त को समझाते है। गुरू अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जातें है, गुरू अज्ञान का निराकरण कर धर्म की मार्ग दिखाता है, गुरू ने जो नियम बताये है,उन नियमों पर आस्थापूर्वक चलना सतनाम धर्मवलंबियों का परम कर्तव्य है।

संसार में करोड़ो अरबों से अधिक जीव जन्तुओं उत्पन्न हुए है, उनमें से बुद्वजीवी मानव को सर्वश्रष्ठ माना गया है, किन्तु सभी जन्मे मानवों की जयंती मनाया जाता है। 18 दिसंबर का महान पवित्र दिवस सम्पूर्ण सतनामी धर्मावलंबियों के लिए महान पर्व है। सतनामधर्म के अनुयायी संसार में करोड़ की सख्या में है। छत्तीसगढ़ राज्य में जिला-बलौदाबाजार विकासखण्ड-कसडोल के सोनाखान जंगल में स्थित पवित्र गिरौदपुरी धाम प्रकट है, जो समस्त सतनामी धर्मावलंबियों का महान तीर्थ स्थल है। पवित्र गिरौदपुरीधाम में 18 दिसंबर सन् 1756 में माता अमरौतीन पिता महगुदास के घर जन्म लेकर सतपुरूष /गुरू बाबाघासीदास जी नें बालक रूप में दर्शन दिये।

गुरू बाबा घासीदास जी निराकार सत्यपुरूष ईष्वर के अवतार थे,इस संसार में सत्यपुरूष ईष्वर का अवतार समय समय पर अलग अलग रूप में अवतरित होकर संसारिक जीव जन्तुओं का उद्वार किये है। जैसे हिन्दू धर्म के राम कृष्ण, इसाईधर्म के ईसामसीह, मुस्लिम धर्म के अल्लाह अकबर, सीखधर्म के गुरूनानकदेवजी, कबीर पंथ के कबीरदास जी ठीक उसी प्रकार सत्यपुरूष गुरू बाबाघासीदास जी के रूप में अवतरित हुए। इस समय मानव अपनें कर्मो से हटकर अन्य मार्गो की ओर बढ़ रहे थे ऐसे समय में सतनाम के मार्ग में चलना व मुक्ति के मार्ग तक पहुचानें हेतु संत षिरोमणी गुरू बाबाघासीदास जी जन्म लेकर मानव जीवन को सीख दी यह सीख किसी एक मानव,एक जाति, एक संप्रदाय, के लिए नही वरण धरती के सम्पूर्ण मानव समुदाय व प्राणी जगत के लिए एक समान है।

संत शिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी व्यक्ति ही नही अपितु संपूर्ण मानव संस्थान है, तथा हरेक दृष्टिकोण से अनुकरण करने योग्य है।

बाबा जी के कुछ विचार, वाणी, उपदेश, संदेश का संक्षित वर्णन-

दार्शनिक विचार-
बाबा जी नें कहा है कि अच्छी बात विचार को स्वीकार करो इसके लिए पुरान, बाईबिल, गीता, रामायण, गुरूग्रंथसाहेब, वेद्, पुरान, उपनिषद, गुरूउपदेष आदि से अध्ययन, श्रवण,मनन कर उससे ग्रहण करने योग्य बातों को स्वीकार कर हृदयगम करो,तथा जो धारण करने योग्य नही नही है,उसे किसी से मत कहो।

अंहिसा-
बाबा जी शारीरिक, मानसिक, आत्मिक किसी भी अन्तरआत्मा को दुखाना कष्ट पहुचाने की बात करना मानव सहित पषु पक्षी व अन्य जीव जन्तुओं की पीड़ा को अपनी पीड़ा समझकर प्रकृति को बीना नुकसान पहुचाये स्वतंत्र जीवन जीने की बात कही। मानव को केवल जागृत अवस्था में ही नही वरण स्वप्न या ख्याल बातों में भी हिंसक नही होना चाहिए।

न्यायिक-
बिना किसी गलती के माफी मागंना भी अपराध है, क्योकि दण्ड चाहे एक पैसे का हो चाहे एक लाख का हो,दण्ड तो दण्ड ही है। तथा कोई भी व्यक्ति अपना अपराध स्वीकार कर आपके शरण में गुहार करता है व भविष्य में ऐसा अपराध न करनें का संकल्प लेता है तो उसे क्षमा कर दो क्योकि शरणागत कि रक्षा करना धर्म है। संघर्ष के समय पीठ पीछे कर भाग रहा है,उसे मत मारो। गुरू बाबाघासीदास जी की न्यायिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने हेतु मानव समाज में सतनामधर्म के प्रणेता परम पुज्यनीय गुरू बाबाघासीदास जी के उत्तराधिकारी गद्वीनसीन गुरू अमरदास जी, गुरू बालकदास जी, गुरू आगरदास जी, गुरू अड़गडि़हादास जी, गुरू साहेब दास, गुरू अगरमन दास जी, गुरू अगमदास जी के बाद से जगतगुरू विजयकुमार जी, जगतगुरू रूद्रकुमार जी के द्वारा वर्तमान समय में राष्टीय, राज्य, जिला,ब्लाक, अठगंवा व ग्राम स्तर पर क्रमश: -राजमंहत, मंहत, दीवान, भण्डारी, छड़ीदार, प्रधान, पंच व सामाजिक कार्यकर्ताओं की पद नियुक्ति व्यवस्था है।

समाजशास्त्री-
समाज में सभी मानव समान है,सबको समान जीने खाने का अधिकार है किसी भी जाति धर्म सम्प्रदायपंथ के आधार पर विरोध या उनकी व्यवस्था को अंगीकार ना करना मानव की नासमझीपन है। हमें उस उच्च-निच अमीर गरीब की फेर में नही पड़ना चाहिये।

चिकित्साशास्त्री-
बाबा गुरू घासीदास जी प्रकृतिज्ञानी थे,वे जानते थे कि प्रकृति के पांच तत्व पृथ्वी,जल,वायु, सुर्य व आकाश से निर्मित काया का उपचार भी प्राकृतिक तत्व से हो सकता है। उन्होने आध्यात्म, योग, साधना तप,सम्मोहन आदि पर सिद्वी प्राप्त किया साथ ही साथ प्राकृतिक आयुर्वेद जड़ी बूटी औषधियो का ज्ञान था बाबा जी इन्ही ज्ञान व तपोबल के कारण ही गाय, बछड़ा, कुत्ता, हिरण, हाथी, षेर, सर्प सहित मानवों को जीवन दान दिया।

अर्थशास्त्री-
बाबा जी कहते है कि हीरा का कोई मोल नही होता उसे वनज के हिसाब से बेचा नही जाता बल्कि नीलाम किया जाता है।देष में समाज र्की आिर्थक व्यवस्था मजबूत हो इसके लिए हमें फिजूल खर्ची दिखावा से बचना चाहिए। बहुमुल्य वस्तु, वस्त्र, आभूषण, पदार्थ या धन का संग्रह कर स्वयं,समाज व राष्टहित में ही खर्च करो यदि धन अधिक हो तो अचल संपति बनाओं। शब्दषाखी, नामपान, भजनगीत, मंगलपद, पंथी को जन मानस को कंठस्त कराया तथा सतनामधर्म का प्रचार र्निगुण भजन, आरती, वंदना, पांजी, परवाना, अमृत, तिलक, कण्ठी, माला, जनेव के माध्यम से किया।

धर्मशास्त्री-
बाबा जी बतलाया कि विष्व में जितनें भी धर्म है उसी प्रकार सृष्टि व विस्तार है, हमें सृष्टि के उलझन में नही पड़ना चाहिये तथा बिना किसी परीक्षण के किसी बातों को स्वीकार नही करना चाहिए। लोग परम्परा, धर्म, रूढि़वादी, अंधविष्वास, मूर्तिपुजा, स्वर्ग नरक की फेर में मानवों नें धर्मों को विकृति कर दिया है।

राजनितिज्ञ-
सतनामी समाज का सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, भौतिक, राजनिति व्यवस्था अलिखित है, लेकिन हमारे बुजुर्गों को कंठस्थ है। बाबा जी सतनामी बनना और सतनामी कहलाना को नदी के दो पार मानते थे समाज जन राजनिति से जुड़कर अपनें मांगों को शासन-प्रषासन में मजबुती रखे जा सकतें है। क्योकि पराधीन बनने से अच्छा स्वालंबन बनने की बात कही।

साक्षात्कार वादी-
बाबा जी को आत्मा परमात्मा का ज्ञान था वे अपने समान दुसरे को मानते थे वे दुसरों की दुख दर्द, भूख प्यास, निद्रा कष्ट, को अपनें ही समान समझते थे। किसी आत्मा को ठेस ना पहुचें इसलिये बाबा जी नें बतलाया कि मानव को प्रेम, दया, करूणा, भाईचारा, समानता, अहिंसा, सत्य जैसे मानवधर्मकी पालन कर हिंसा के सभी रूपों से दुर रहनें की बात कही है।

बहुसुत्रवादी-
बाबा गुरू घासीदास जी संत, साधु, ज्ञानी, गुरू और विद्ववानका संगत किया करते थे,सतसंग के माध्यम से ज्ञान व परमात्मा का बोध होता है।चिंतन मनन की प्रक्रिया बढ़ती है मन में भाव विभोर को व्यक्त किया जाता है। सतसंग के द्वारा विभिन्न धर्मो के आचार्य, भिच्छु, पंडित, मूल्ला, पादरी ज्ञान के सिद्वांत तत्व उपदेषो को समझ धर्म मनुष्यो को जोड़ती है। धर्मपंथ समप्रदाय के अंतर को जाना।

आत्मदर्शन वादी-
गुरू बाबा जप, तप ,ध्यान व योग किया करतें थे, इससे उनको आध्यात्मिक आत्मिक शक्ति की प्राप्ति होती थी। आत्मिकशक्ति (सतनामशक्ति) से बाबा जी अपने आप को परखा जाना व समझा यही श्रेष्ठ धर्म है, जो स्वयं को न जान सका वह दुसरो को जान समझ परख नही सकता हमे आत्मदर्शन से ही निज स्वरूप का बोध होता है, निज बोध होने पर ही पता चलता है कि कोई हमारा शत्रु या मित्र नही है सबमें सम भाव दिखता है।

समाज को नई गति व दिशा प्रदान करने में गुरूबाबा घासीदास जी का अमुल्य योगदान रहा है, गुरूबाबा के उपदेषों से असहाय लोगो को आत्मविष्वास व व्यक्त्वि और अपने जीवन के अधिकार को प्राप्त करने की षक्ति का सेचार हुआ बाबा जी की जीवन वह प्रकाश है जो अन्नतकालों तक संसार को सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम, समानता व मानवता का संदेष देता रहेगा। गुरूबाबा जी के प्रवर्तित सतनाम पंथ के आज पुरे भारतवर्ष में करोड़ो अनुयायी है।

गुरूबाबा घासीदास जी जो सतनामपंथ के प्रर्वतक है, बाबाजी के साथ ही उनके पुत्रो क्रमशः तपस्वी गुरू अमरदास जी, बलिदानी राजागुरू बालकदास जी, वीरगुरू आगरदास जी, गुरू अड़गडि़हादास जी, पोता युवराजगुरू साहेबदास जी, राजागुरू अगरमनदास जी, व परपोता गुरूगोसाई जगतगुरू अगमदास जी, अपने अपने समय की सामाजिक,आर्थिक विषमताओं,षोषण और वर्णव्यवस्था भेद को समाप्त करके गिरौदपुरी, भण्डारपुरी, तेलासीपुरी, खडुवापुरी, चटुवापुरी, बोड़सराबाड़ा, खपरीपुरी आदि सतनामपंथ के धार्मिक स्थल को सत्य के शक्ति से संत समाज को प्रमाणित किया था। आज भी संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के गुरूगद्द्वी उत्तराधिकारी पांचवे वंशज पुज्यनीय 108 श्री श्री जगतगुरू विजयकुमार जी, गुरूगद्वीनसीन सतनाम पंथ/सतनामी समाज के मार्गदर्शक, आदेषक, संचालक प्रर्वतक व निर्देशक है। जो बाबा जी के मानव-मानव एक समान व सतनामपंथ के संदेश को विश्व पटल पर फैला रहा है।

बाबा जी का सात शिक्षा है - सत्य, अहिंसा, धर्य, लगन, करूणा व मेहनत कर जीवन में समानता,स्वतंत्रता व सरलता का व्यवहार कर सतनाम के राह पर चलते हुए मानव जीवन को सार्थक करे।
1. सतनाम पर विष्वास रखना।
2. अहिंसा मत करना।
3. सात्विक भोजन करना
4. अनैतिक कार्य ना करना।
5. किसी भी प्रकार का नषा पान मत करना।
6. उच्चनिच व भेदभाव के प्रपंच में मत पड़ना।
7. स्त्री व बुजुर्गो का सदैव समान करना।

शासन के द्वारा गुरूबाबा घासीदास जी की स्मृति में जयंती गुरूपर्व पर अवकाष, डाकटिकट जारी व गुरूधासीदास सम्मान की स्थापित किया है।

जय सतनाम्