सतनाम पंथ के विकास में गुरूमाताओं के योगदान की गौरव गाथा

सतनाम पंथ के प्रणेता संतशिरोमणी गुरू बाबा घासी दास जी के सतनाम समाज के षुरूआत से लेकर अब तक के हुए संस्कृतिक, सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक, विकास उत्थान व प्रत्येक घटना क्रमों में सत्यांशु गुरू परिवार के साथ गुरू माताओं का भी पीढ़ी दर पीढ़ी प्रमुख रूप से सहयोग का योगदान रहा है। गुरू माताओं में राजगुरू कुलमाता सफुरामाता जी (गुरूबाबा घासी दास जी की धर्मपत्नी), दीदीगुरू सोहद्रामाता जी (गुरूबाबा घासीदास जी की पुत्री), प्रतापुरहीन माता जी (तपस्वीगुरू अमरदास जी के धर्मपत्नी), नीरामाता व राधामाता जी (बलिदानी राजागुरू बालकदास जी की धर्मपत्नि), मुटकीमाता जी (धर्मगुरू आगरदासजी की धर्मपत्नि), कनुका माता जी (वीरगुरू अगरमनदास जी की धर्मपत्नि), मिनिमाता व करूणामाता जी (गुरूगोसाई अगमदास जी की धर्मपत्नि), आदि गुरू कुल के गुरूमाताओं ने समाज के सामुदायिक अधोंसंरचना विकास कार्यो में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, वर्तमान में सतनामधर्म सतनामी समाज के राजगुरू माता राजराजेश्वरी कौशलमाता जी (गुरूगद्वी नसीन जगतगुरू श्री विजयकुमार जी की धर्मपत्नि) व गुरूवंश की पु़त्रवधु सरितामाता (युवराज जगतगुरू रूद्रकुमार जी की धर्मपत्नि) व दीदीगुरू प्रियंका (जगतगुरू श्री विजयकुमार जी की पुत्री) समाज कल्याण व मानवो के उत्थान में संतसमाज को सतनाम पथ पर मार्गदर्शन प्रदान कर रहे, संत शिरोमणी गुरू बाबा घासीदाजी के उत्तराधिकारी जगतगुरूओं के साथ सामाजिक व धार्मिक कार्यो में सहभागिता निभाकर कर्तव्य का पालन कर रही है।

ममतामयी मिनीमाता

जीवन परिचय -
ममतामयी मिनीमाता का जन्म आसाम प्रांत के दौलगांव में 13 मार्च सन् 1913 को हुआ था,मिनिमाता की बचपन के नाम मीनाक्षी था। माता जी पढ़ाई लिखाई में तेज थी और सत्य अहिंसा व प्रेम की साक्षात् प्रतिमुर्ति थी। सन् 1932 में गुरूगोसाई अगमदास जी के साथ इनका विवाह हुआ । इनकी कोई संतान नही थे वह अपने पति गुरूगोसाई अगमदास जी व राजराजेष्वरी करूणामाता की गोद से उत्पन्न बाबा जी के पांचवे वंशज जगतगुरू विजयकुमार का का लालन पालन कर सतनाम संस्कारों से परिपोषित किया है।

प्रथम महिला सांसद- ममतामयी मिनीमाता सतनामधर्म के इतिहास में स्वतंत्र भारत की प्रथम महिला सांसद थी। गुरूबाबा घासीदास जी के चैथे वंशज गुरू अगमदास जी महान देशभक्त थे मिनिमाता उनकी पे्ररणा से स्वाधिनता के आंदोलन,समाज सुधार व मानवों के उत्थान के कार्यो में बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया। मिनीमाता की राजनितिक सक्रियता और समर्पण समाजोत्थान के उद्वेष्य और लक्ष्य प्राप्ति व पिडि़तों के अधिकार के लिए संसद में अनेको कानून बनवाया। मिनिमाता का देश के शीर्षस्थ राजनायिको जिनमें प्रमुखतः प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ,डाॅ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन, पडित जवाहर लाल नेहरू, श्रीमति इंदिरागांधी व पंडित रविष्ंाकर षुक्ला सहित अनेक राजनायिको से आत्मीय संबध रहे है।

मिनिमाता के सवैधानिक कार्य - ममतामयी मिनीमाता व राजराजेश्वरी करूणामाता जी दोनो गुरू अगमदास जी कि धर्म पत्नीया थी सन् 1951 में गुरू अगमदास जी (सांसद) का सतलोक गमन के पश्चात आपस में कार्यो का बाटते हुए ममतामयी मिनीमाता ने राजनिति में रहकर आजीवन चार बार लगातार 1952 से 1972 तक सांसद रही वे शासन-प्रषासन के साथ समन्वय बनाकर मानव कल्याण, नारीउत्थान, किसान मजदुर, छुआछुत के कानून, बालविवाह, दहेजप्रथा, अपाहिज व अनाथ के लिए आश्रम, महिला शिक्षा व छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आंदोलन जैसे जनहीत के अनेको कार्यो का योजनाओं को लागू करवाया है।

समाज को दिलाया राष्ट्रीय सम्मान - षासन प्रषासन ममतमयी मिनिमाता की प्रेरणा से मिनीमाता हसदेव बागोबांध परियोजना बना है, जिसके चलते आज किसानो की हजारो एकड़ जमीन की सिचाई, भिलाई ईस्पात संयत्र में स्थानीय लोगो को रोजगार व औद्यौगिक प्रषिक्षण के अवसर प्रदान की दिषा में पहल, षासकीय संस्थानों स्कुलो व कालेजों का नामकरण मिनिमाता के नाम पर होना। साथ मिनीमाता जी गरीब, दिन दुखियो के अलावा आम जनों की समस्याओं को पुरी गंभीरता के साथ लेती थी व उनके मदद के लिए हर स्तर पर प्रयास करती थी। माता जी के लगन उत्साह व कड़ी मेंहनत के साथ सादगीपुर्वक जीवन शैली के सभी वर्ग के लोग कायल थे। ममतामयी मिनिमाता जी सतनामी समाज को अखिल भारतीय स्तर पर प्रतिष्ठा दिलवाई है।

मिनिमाता का सतलोक गमन - मिनिमाता जी सद्वभावना और ममता की प्रतिमुर्ती, सजग सांसद, कर्मठ व समाज सेविका थी। 11 अगस्त 1972 को आधी रात के समय दिल्ली पहुचने के पूर्व विमान एक दुर्घटना में ममतामयी मिनीमाता के साथ सभी यात्रियो का असामयिक सतलोक गमन हो गया। उक्त दुर्घटना में माता जी की सतलोक गमन से समाज के साथ ही सम्पूर्ण देश और छत्तीसगढ़ प्रदेश में गमगीन मौहौल हो गया था।

मिनिमाता सम्मान की स्थापना - छत्तीसगढ़ षासन के द्वारा मिनिमाता जी की स्मृति में समाज व महिलाओं के उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए मिनिमाता सम्मान की स्थापना किया गया है।

राजराजेश्वरी करूणामाता

जीवन परिचय -
करूणामाता जी का जन्म केवटा डबरी के मालगुजार रतिराम जी के घर में हुआ। करूणामाता संस्कारी होने के साथ ही गृह कार्यो में दक्ष, बुद्विमान, स्वभिमानी स्वभाव की थी। करूणामाता का विवाह पुज्यनीय गुरू घासीदास जी के परपोता गुरूगोसाई अगमदास जी के साथ सन् 1935 में हुआ था। काफी लंबे समय के अंतराल के बाद सतपुरूष गुरूबाबा घासीदास के असीम कृपा आर्षिवाद के फलस्वरूप गुरूगोसाई अगमदास जी व राजराजेष्वरी करूणामाता जी की गोद में सत्यांश का विजयगुरू उर्फ अग्रनामदास जी के रूप में इस धरती में 19 सितंबर 1951 को अवतरण हुआ।

समाज विकास व सामाजिक कार्यकर्ताओं की नियुक्ति - गुरूगोसाई अगमदास जी (सांसद) का सतलोक गमन के पष्चात आपस में ममतामयी मिनीमाता राजनिति व राजराजेष्वरी करूणामाता सामाजिक कार्यो को बाटते हुए आजीवन सामाजिक संगठन को मजबूती हेतु राउटीकर राजमंहत, दीवान, भण्डारी, छड़ीदार जैसे पदो पर योग्य व्यक्तियों को पदाधिकारी मनोनित करना, पावनधाम गिरौदपुरी, खडुवापुरी, प्रतापपुर में मेंला का संचालन, सन् 1966 में रायपुर के सेन्ट्रल जेल में गुरूघासीदास जी की जयंती व 1933 में स्थापित नहरपारा रायपुर में गुरू अगमदास आश्रम का संचालन (1953 में) जैसे अनेको समाजिक विकास कार्य किया गया।

महिलाओं को समानता का अधिकार - भारत में आजादी के पूर्व से ही सतनामी समाज के महिलाओ को पुरूषो के समान अधिकार प्राप्त है। सतनाम पंथ के अनुयायी पारिवारिक, समाजिक, आर्थिक, षिक्षा, कृषि व सुख-दुख के कार्यो में महिलाओ का निर्णय को महत्व दिया जाता है। राजराजेष्वरी करूणामाता सतनामधर्म सभाओं में स्त्री व पुरूष को जीवन रूपी रथ के दो पहिया बतलाकर नारी जाति के सम्मान व स्वाभिमान के लिए आवाज उठाकर समाज में महिलावर्ग का उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सतनाम संदेश व सामुहिक आर्दश विवाह की शुरूआत - राजराजेष्वरी करूणामाता संत समाज को नित नई दिषा प्रदान कर अपनें संदेश में बतलाती थी कि संत षिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के प्रतिकात्मक स्वरूप सत्य, अहिंसा, आस्था और निष्ठा के प्रतिक सफेद पालों लहतराते पवित्र जैतखाम बाबा जी के प्रतापीपुंज का ऐसा संवाहक है जिसे तन, मन, धन व अन्य प्रकार से अपराध करने वाला स्पर्ष नही कर सकता। यह परंपरा संत शिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के समय से चली आ रही है। करूणामाताजी 1953 से ही गुरूगद्वी, सामाजिक, धार्मिक आस्था केन्द्र स्थलों के साथ ही साथ गिरौदपुरी गुरूदर्शन मेंला व समाज के विकास उत्थान कार्यो का सफलता पुर्वक संचालन किया है, माता जी समाज में फिजूल खर्च को रोकने तपोभूमि गिरौदपुरी में सामुहिक आर्दश विवाह की शुरूआत किया जहा माता जी के मार्गदर्शन में हजारो सामाजिक शादिया बड़ी ही सादगी के साथ कराई गयी है,जो आज भी अनवरत जारी है। करूणामाता के सामुहिक आर्दश विवाह के महत्व को समझकर प्रेरणीत अन्य धर्म व समप्रदाय के लोग सामुहिक आर्दश विवाह का आयोजन कर समय व धन का बचत कर रहे है।

राजराजेश्वरी करूणामाता जी पंच तत्व में विलिन - 31 अगस्त सन् 2006 को माता जी पंचतत्व में विलिन हो गई। राजराजेष्वरी करूणामाता जी का पूरा जीवन समाज सुधार, मानव कल्याण व समाज में एकता तथा सतनामधर्म हेतु समर्पित रहा आज वे हमारे बीच नही है, लेकिन उनकी ममता, दया, करूणा व प्रेम तथा मानव कल्याणार्थ किये सामुदायिक कार्य प्रेरणादायक है।

जय सतनाम्