बाबा गुरू घासीदास जी के वंशज उत्तराधिकारी, जगतगुरू गद्वीनसीन - सतनाम पंथ

बाबा गुरू घासीदास जी के वंशज उत्तराधिकारी, गुरू गद्वीनसीन सतनाम पंथ/सतनामी समाज भारत वर्ष - गुरूबाबा घासीदास जी के सतनाम आंदोलन को पुुत्र क्रमशः तपस्वीगुरू अमरदास जी, बलिदानीराजागुरू बालकदास जी व प्रतापीगुरू आगरदास जी ने भी अपनें पिता के समान सतनाम के संस्कृति, प्रेम, सौहार्द्र, करूणा, मैत्री, दया और उदारता के मानवीय गुणों का परिपालन करते हुए मानवीय चेतना की जागृति,समाज में सुधार हेतु अलग अलग जगहो पर राऊटी लगाकर सतनामधर्म का प्रचार प्रसार किया। बाबा जी के तृतीय पु़त्र गुरू आगरदास जी व बलिदानी राजागुरू बालकदास जी के पु़त्र गुरू साहेबदास जी द्वारा संयुक्त संचालन उसके बाद गुरू आगरदास जी के पु़त्र गुरू अगरमनदास जी (बाबा जी के पोता/तीसरा वंशज) तत्पश्चात गुरू अगरमनदास जी के पुत्र जगतगुरू अगमदास जी (बाबा जी के पोता/चैथा वंशज) के बाद आज वर्तमान में जगतगुरू अगमदास जी के पुत्र जगतगुरू विजयकुमार जी (बाबा जी के परपोता/पांचवे वंशज) सतनाम पथ सतनामी समाज, सतनामधर्म का गुरूगद्वीनसीन जगतगुरू, धर्माचार्य, आदेशक, निर्देशक, नियंत्रक व मार्गदर्शक है। जगतगुरू विजयकुमार जी अपनें पुत्र युवराज जगतगुरू रूद्रकुमार (बाबा जी के परपौत्र/छटवें वंशज) के साथ संयुक्त रूप से समाज के लोगो का विकास, उत्थान व अधिकार के लिए समय कालिन शासन प्रसाशन से समन्वय स्थापित कर साथ ही राजमंहतों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व संतसमाज जनों को साथ लेकर बाबाजी के सतनाम पथ को अजर अमर बनानें का कार्य कर रहे है। संतशिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी के सतनाम बतलाये मार्ग पर चलनें बाले लोग सतनामी है, सतनामी लोगो का समूह ही सतनामी समाज है, सतनामी गुरूबाबा, सतनामधर्म पर विश्वास करते है।

मानव जाति

मानव जाति - महान संतशिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी ने बतलाया है कि सतपुरूष नें संसार के समस्त जीवों के उत्पति ही प्रकृति/जाति का आधार है क्योकि एक जाति की मूल प्रवृति एक समान होती है, अर्थात जैसे मानव, कुत्ता, बिल्ली, बंदर, सिंह, पेड़, पहाड़ सहित सभी सजीव-निर्जीव निर्माण का निर्धारण व योनी अनुकुल मूल प्रवृतियां एक समानता प्रकृति प्रदत जाति है। मानवों के द्वारा निर्मित जाति वर्ग है, जिसमें अनेको वर्ग, नस्ल व समंप्रदाय बनाये है, जिसे मानव आपस में उच्च निच, भेदभाव का वैमनश्य में उलझकर अपनें मूल योनी अस्तित्व को खो दिया है। मानव निर्मित जातियो व वर्गो की भेदभाव को बाबा जी के ‘मनखे मनखे एक समान‘ की विचार धारा से समूल नष्ट कर समाज में विकास व समृद्वि किया जा सकता है।

सतनामी

सतनामी - गुरू घासीदास जी सामाजिक समानता के पक्षधर थे, उनके स्वभाव तथा विचारों से प्रभावित दलित पिड़ित शोषित,वंचित विभिन्न धर्म व जातियो के लाखों लोगों ने खोई हुई सम्मान को पुनः प्राप्त करनें बाबा जी के सतनामधर्म पर अपनी आस्था प्रकट कर सतनाम के पथ पर चलनें व माननें शामिल हुए लोग सतनामी है।

सतनामी समाज

सतनामी समाज -संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी का सतनामधर्म पथ पर चलने वालो लोगों का विशाल समूह सतनामी समाज है, जिसका प्रमुख उद्वेश्य मानव मानव एक समान, सत्य प्रेम अहिंसा, स्वतंत्रता, स्वाधिनता व समानता के सतनाम संदेश से सामाजिक, धार्मिक, सास्कृतिक, आर्थिक व कुरितियों के नाम पर भिन्न भिन्न वर्ण व्यवस्था में बटी मानव समाज में उच्चनिच व जातपात के नाम पर दलित, कमजोर वर्ग के लोगों का शोषण व जुल्म अत्याचार से मुक्त मानव समाज की स्थापना करना है। सतनाम पंथ के प्रथमगुरू गुरूबाबा घासीदास जी के द्वारा सन् 1786 सत्रहवी शताब्दी में सर्वप्रथम भारत के मध्यप्रांत में सतनाम आंदोलन का शुरूआत किया गया। गुरू परिवार के अगुवाई में सतनाम आंदोलन सन् 1786 से सन् 1850 तक तत्कालिन राजा, जमीदार, सामंतशाह, धर्म के ठेकादारों, स्वर्णो को झंझकोर दिया था देष में ब्रिटिश शासन का प्रभाव नही होता तो यह आंदोलन सामाजिक युद्व का रूप ले लेता।

गुरूप्रधान समाज

गुरूप्रधान समाज - गुरूबाबा घासीदास जी के सतनाम आंदोलन को पुुत्र क्रमशः तपस्वीगुरू अमरदास जी, बलिदानीराजागुरू बालकदास जी व प्रतापीगुरू आगरदास जी ने भी अपनें पिता के समान सतनाम के संस्कृति, प्रेम, सौहार्द्र, करूणा, मैत्री, दया और उदारता के मानवीय गुणों का परिपालन करते हुए मानवीय चेतना की जागृति, समाज में सुधार हेतु अलग अलग जगहो पर राऊटी लगाकर सतनामधर्म का प्रचार प्रसार किया। समाज के लोगो का विकास, उत्थान व अधिकार के लिए समय कालिन शासन प्रशासन से समन्वय स्थापित कर साथ ही सतनाम को अजर अमर बनानें अनेकों जगह गुरूद्वारा निर्माणकर वहा पर गुरूगद्वी व पवित्र जैतखाम का स्थापना किया है। भारत के सतनाम इतिहास के शुरूवात से लेकर अब तक सतनामी समाज ही एकमात्र गुरू प्रधान समाज है जहा गुरू सतनाम के नियमानुसार से समाज के सभी सामाजिक, धार्मिक व विभिन्न सामुदायिक कार्यो पर आर्शीवचन/मार्गदर्शन प्रदान करते है। समाज में गुरू का निर्णय अंतिम व सर्वमान्य होता है।

सतनामधर्म

सतनामधर्म - भारतीय धर्मो में सतनामधर्म का पवित्र व अनुपम स्थान है,सतनामधर्म के अनुयायी को सतनामी कहा जाता है। सतनामधर्म की खोज सन् 1756 में जन्मे सतनामी समाज के प्रथम गुरू संत शिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी ने किया। बाबा घासीदास जी अपने समय के भारतीय समाज में व्यापत कुप्रथाओं, अन्धविश्वासो, छुआछूत, उच्च-निच के भेदभाव, जर्जर रूढ़ियो व पाखण्डो को दूर करते हुए जन साधारण धर्म के ठेकादारो, जमीदारो, पण्डो, पीरो व फकिरो आदि के चुगंल से मुक्त कराते हुए सत्य, अहिंसा, दया, पे्रम, करूणा, सेवा, परिश्रम, परोपकार व भाईचारा की मजबूत नीव पर सतनामधर्म की स्थापना किया। गुरू बाबाघासीदास जी का मुख्य उपदेश के अनुसार सत् ही नाम है, नाम ही सत् है। सत् ही सेवा, करूणा, चैतन्य, पे्रम, संयम, शील, चरित्र आदि का प्रतिक है सत्य ही मानव का आभूषण व मनखे मनखे एक समान है। सतनामधर्म का जीवन में अत्यधिक महत्व है,अपनें अधिकारों और कर्तव्यों को समझना उनका पालन व उपयोग करना सतनामधर्म है। सतनामधर्म सतनामी समाज रूपी शरीर की आत्मा है।

सतनामी जाति

सतनामी जाति - दुनिया में सतनामी समाज का एक अलग पहचान हो संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के चैथे वंशज उत्तराधिकारी गुरूगद्वीनसीन जगतगुरू अगमदास जी ने सतनामी समाज से संबधित सज्जनों को सतनामी नाम से सम्मान पुर्वक संबोधन, जानने, पहचान हेतु सी.पी.बरार तत्कालीन के गर्वनर को सन् 1924 पत्र लिखा था जिसे गर्वनर स्वीकार करते हुए 1926 को तदाशय सतनामी जाति/सतनाम समुदाय के मान्यता पर महत्वपूर्ण आदेश जारी किया तथा कानूनी वैधता मिलने से सतनाम धर्म के मानने वाले लोगों को अपनी जाति सतनामी नाम का पहचान मिला। गुरूगोसाई अगमदास जी के द्वारा सवैधानिक रूप से कराये गये कार्यो में यह कार्य समाज को एक सुत्र में बाधने के लिए महत्वपूर्ण कड़ी साबित हुआ।

जाति के लाभ - भारतीय समाज विभिन्न जाति धर्म/व्यवसाय स्तर के वर्ग समूहो में बटा हुआ है, तथा अपनें अपनें समाज के सामाजिक नियमानुसार कर्तव्यों का निर्वाहन कर समाज की संस्कृति के अनुरूप खानपान, सुखदुख के कार्यक्रम, धार्मिक, सामाजिक जीवन में एक रूपता व्यवहार, विकास की ओर अग्रसर सतनाम सुत्र की एकता में बंधे सतनामी जाति का एक विशिष्ट पहचान है।

हिन्दूधर्म के अधिन सतनामी समाज -- स्वतंत्र भारत के भारतीय संविधान में हिन्दूधर्म के अनुसुचित जाति (दलित, शोषित समाज) में शामिल के उत्थान हेतु अनेक प्रकार के आरक्षण का वैधानिक प्रावधान किया है, जिसके अंर्तगत संसद तथा राज्यों के विधान मंडलों में आरक्षित स्थान इसी प्रकार केन्द व राज्य सरकार की शासकीय नौकरियों में भी अनु.जाति, जनजाति के लिए स्थान आरक्षित है जो कि इन जातियों के लिए अंतिम काल के लिए दिया गया है। जगतगुरू अगमदास जी भारतीय संविधान निर्माणसभा के सदस्य थे अतः समाज के लोगो को सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक क्षेत्र में आरक्षण अधिकारो का लाभ मिले, सतनामी जाति हिन्दूधर्म के अनुसुचित जाति वर्ग का प्रमुख हिस्सा बना।

सतनाम संस्कृति

सतनाम संस्कृति - भारतीय संस्कृतियों में सतनाम संस्कृति गुरूप्रधान संस्कृति है, सतनाम संस्कृति का उदगम व विकास संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के जीवन कार्यो व विचारो से हुआ गुरू बाबा जी के बाद से उनके वंशज गुरू परिवार सतनाम की संस्कृति से निरन्तर जन जीवन को सिंचित कर रहे है। समाज में गुरू का स्थान सर्वश्रेश्ठ है। तत्कालिन राजा, जमीदार, सामंतशाह, धर्म के ठेकादारों, स्वर्णो के इतनें प्रतिघात व देश में ब्रिटिश शासन का प्रभाव के बावजूद भी सतनामधर्म, गुरूओं के गाथा, गुरूद्वारा, निति, सुत्र, प्रथा, परम्परा, सामाजिक व्यवहार आदि सतनाम की संस्कृति आज भी अपनी प्रामाणिक मूल विशेषताओं सहित पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित और संरक्षित है।

सतनाम संस्कृति की विशेषता

सतनाम संस्कृति की विशेषता - सतनाम संस्कृति की प्राण उसकी प्राकृतिक विशेषताओं में ही निहित.है। सत्य, प्रेम, अहिंसा, दया, करूणा, मैत्री सतनाम के गुण है।

स्वतंत्रता- सतनाम की संस्कृति किसी को थोपती नही है, कोई भी मनुष्य अपनी चेतना और रूची के अनुसार जीवन में सतनाम को ग्रहण कर सकता है क्योकि बाबा जी ने कहा है कि सतनाम के पथ पर आने वालो को रोकना व जाने वालों को टोकना नही है। सतनाम संस्कृति को अपनाकर व्यक्ति स्वतंत्रता पूर्वक बिना किसी को दुख नुकसान पहुचाये सफल मानव जीवन जी सकता है। समानता - बाबा जी के संदेश ‘मनखे मनखे एक समान‘ की उदारमानी संस्कृति है,जहा मनुष्य बिना किसी भेद भाव के समभाव दृष्टि से कार्य करते हुए अपनें दायित्वों का निर्वाहन करते है। सतनामधर्म में स्त्री को पुरूषो के समान ही समानता का अधिकार प्राप्त है समाज की महिला परिवार या समाज के प्रत्येक सुख-दुख के कार्यो में सहभागिता निभाती है।

आध्यमिकता- सतनाम संस्कृति मुलतः आध्यमिक है, क्योकि संतशिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी व उनके पुत्र तपस्वीगुरू अमरदास जी सतनाम को जानने अनेको वर्षो तक कठीन तप किया व अपनें आध्यत्मिक शक्ति से सतनाम की प्राप्ति, सतपुरूष के दर्शन हुए। आध्यत्म से जीवन में अनुशासन आत्मिक व मानसिक शान्ति,संयम मिलती है।

योग साधना - सतनाम संस्कृति में योग साधना के सहायक तत्व ज्ञान, भक्ति व चरित्र का समन्वित रूप है। तप योग,संयम व साधना से सत्य की खोज तथा जीवन का आत्मोत्थान कर सकता है। योग साधना में समर्पण सहजता एवं सहिष्णुता का समन्वय होने से व्यक्ति का तेज अधिक निखरता है, इससे व्यक्तित्व का बाह्नय व आंतरिक जीवन शैली में सर्वागिण विकास होता है।

सामाजिक धार्मिक प्रथा - सतनामी समाज में सामाजिक धार्मिक सास्कृतिक संस्कृति परम्पराओं के अर्तगत गुरूआरती, गुरूगद्वी व जैतखाम स्थापना, गुरूजंयती, गुरूदर्शन मेंला कण्ठी, जनेऊ, व्रतकथा, उपवास, शादी, छठ्ठी, मरनी, पुण्यतिथि आदि कार्यक्रमो दिवस पर चैकाआरती, मंगल भजन, पंथी गीत-नृत्य, गुरूवाणी, उपदेष, सतनामकथा, नामायण विशिष्ट आर्दश परंपरा- रितिरिवाज, सामाजिक, धर्मकानून (सामाजिक संविधान) जों गुरू के द्वारा बनाये हुए नियमों/उपनियमों के आधार पर (जिसे समयानुकुल संतसमाज के आग्रह के अनुसार सर्व सहमति या स्वविवेक सुधार/संसोधन/विलोप कर )आदिकाल से चला आ रहा है।

सामाजिक संविधान- सतनामी समाज के प्रचलित आर्दश, मुल्य, रीतिरीवाज और प्रथाए है जिसे प्रत्येक सतनामी को जीवन में बाल्य, युवा, प्रौढ़ व वृृद्व अवस्था के अनुसार पालनकर व्यवहार करना होता है, सतनाम धर्म के अनुयायी का जीवन शैली सादगीपूर्ण होता है।

सामाजिक नियंत्रण व एकता- सतनामी समाज में सुव्यवस्था,एकता व नियत्रंण के कारण ही संत समाज के सदस्यगण एक दुसरे से मिल जुल कर अनुरूपता से संबधित समस्याओं का समाधान गुरू के बनाये, बतलाये सुझावों/ नियमों/ उपनियमों/ साधनों के माध्यम से व्यक्तियों के व्यवहारों व विचारों को परिवर्तित और नियत्रित करते है, सतनामधर्म में आस्था, विश्वास, नियम और मान्यताये है। सतनामी समाज के लोगों में एक दुसरे से परस्पर संबध, संगठित, एकता व संतुलन बना हुआ है।

समाज के नियंत्रक- सतनामपथ/सतनामधर्म /सतनामी समाज गुरू प्रधान समाज है, समाज के निर्माणकाल से ही संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी व गुरूबाबा के उत्तराधिकारी गुरूगद्वीनसीन गुरू वंशज ही समाज के समस्याओं का समाधान व मानव कल्याणार्थ कार्यो के नियंत्रक, मार्गदर्शक, धर्माचार्य, जगतगुरू है। गुरूबाबा के उत्तराधिकारी गुरूगद्वीनसीन जगतगुरू, पवित्र जैतखाम व धर्मस्थली गुरूद्वारा समाज के लोगो का आस्था व विश्वास के केन्द्र बिन्दू है। वर्तमान समय में भी प्रातः स्मरणीय परम पुज्यनीय संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के पाचवें वशज उत्तराधिकारी गुरू गद्वीनसीन जगतगुरू श्री विजयकुमार जी सतनामपथ/ सतनामधर्म/ सतनामी समाज के जगतगुरू, मार्गदर्शक, धर्माचार्य, आदेशक, निर्देशक व नियंत्रक है। जगतगुरू श्री विजयकुमार जी अपने पुत्र युवराज जगतगुरू रूद्रकुमार जी के साथ शासन प्रशासन से समन्वय, समाज के महंतो, शासकीय अधिकारी, जनप्रतिनिधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं से मंत्रणा तथा संत समाज से सतत सम्पर्क स्थापित कर समाज के विकास व उन्नति, उत्थान के लिए कार्य कर रहे है।

बाबा गुरू घासीदास जी के वंशज उत्तराधिकारी,जगतगुरू गद्वीनसीन - सतनाम पंथ की सामाजिक संविधान/नियम/उपनियम की संक्षिप्त विवरण

सतनामी समाज/सतनाम पंथ /सतनाम धर्म के अनुयायी संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के बतलाये सतनाम के मार्ग व गुरूबाबा के उत्तराधिकारी गुरूगद्वीनसीन गुरू वंशजो के बनाये गये सतनाम के संविधान पर चलकर मानव जीनव, परिवार, समाज व देश के प्रति सत्य, अहिंसा, प्रेम, दया, करूणा, क्षमा, परोपकार की भाव से मानव कर्तव्यों का निर्वाहन कर गुरूबाबा के सतनाम आंदोलन, सतनाम संस्कृति विचार, गुरूसंदेश की किर्तीगाथा समूचें संसार में प्रकाशित हो। संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के पाचवें वश्ंाज उत्तराधिकारी गुरू गद्वीनसीन जगतगुरू श्री विजयकुमार जी पुत्र युवराज जगतगुरू रूद्रकुमार जी के द्वारा पिढ़ीगत प्राप्त सतज्ञान को लीपीबद्व कर संतसमाज को सतनाम के मार्ग व गुरूबाबा जी के उपदेशों पर चलने मार्गदर्शन प्रदान करनें बनायें सतनामपथ की सामाजिक संविधान नियमों उपनियमों का संक्षित विवरण निम्नानुसार है। सतनामधर्म सतनामी समाज का राजधर्म है, क्योकि इसके अंर्तगत आचार, विचार, व्यवहार, निति, प्रायश्चित आदि के नियम आ जाते है। सामाजिक नियमों का पालन प्रत्येक सतनामधर्म के अनुयायियों के लिए अनिवार्य है।

नियमावली - सतनाम संविधान - बलिदानीराजागुरू बालकदास जी

संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के द्वितिय पुत्र बलिदानी राजागुरू बालकदास जी उत्तराधिकारी पद पर विराजमान होते ही सतनात की शपथ लेकर अपनें पिता के सतसंदेश 42 वाणी 7 संदेश और 34 अक्षरों को साकार करनें का संकल्प लिया।

सतनाम धर्म, गुरूगद्वी और पवित्र जैतखाम को अजर अमर बनानें अपनें गुरूवंशज पीढ़ी को संत समाज की संगठन की शक्ति को साथ लेकर तन मन व धन से संघर्ष करते रहनें कहा, और गुरू घासीदाजी के वंशज ही सर्वोच्च पद पर आशीन होगा। गुरू के बनाये नियमावली समस्त सतनामधर्म रक्षकों पर समान रूप से लागू होगा
1. सतनामधर्म के मुल उद्वेश्य मानव से मानवता का पालन करें।
2. मानव में गुरूवंशजों को उच्चआदर सम्मान के साथ आरती वंदना करके चरणामृत पावन और श्रद्धा/शक्तिअनुसार सम्मान भेट करे।
3. सतनाम को ही माने।
4. सत्य अहंिसा का पालन करे।
5. सतपुरूष के प्रतीक प्रकृति व गुरूगद्वी तथा पवित्र जैतखाम का ही पुजन करे।
6. सतनामधर्म की सतपुरूष के प्रतीक प्रकृति,गुरूगद्वी तथा पवित्र जैतखाम का पुजाव्रत पूर्ण आस्था और सच्चे मन से किसी भी पल, दिन, सप्ताह, माह, साल में सतनाम के विधि विधान पूर्वक करे। (संत समाज सतपुरूष के अंशअवतार संतशिरोमणी परम पुज्यनीय गुरूबाबा घासीदास जी के अवतरण दिवस सोमवार के दिन को शुभदिन मानकर सतनाम के विधिनुसार अपने सभी सुखदुख के कार्यो को कर संत समाज को सार्मथनुसार प्रसादी वितरण कर स्वयं प्रसाद ग्रहण करतें है।
7. संतजन सुबह शाम उदय व अस्त के समय सुर्य का नाम करे, स्नान के समय जन को नमन करे, ध्यान के समय सतपुरूष, वायु, आकाश को नमन करे, कार्य के समय प्रकृति को नमन करे, शुद्वि समृद्वि व सुख शांति के समय आंगन,भवन व पुजा स्थल में सतनाम की प्रतिदिन ज्योत जलाये, मनौति व संकल्प के समय गुरूगद्वी व पवित्र जैतखाम पर कार्य पूर्ण नही होने तक सत्य अहिंसा व्रत धारण कर सतनाम के नियम का पालन करे।

सात आचरण:-

1. सत्य अहिंसा को धारणकर मेंहनत से कर्तव्यफल का लाभ ले।
2. अंधविश्वास, भ्रम, आडम्बर, बुराई से बचें।
3. सम्पूर्ण मानव जाति एक है किसी से जातपात उच्च निच के भेदभाव मत करो।
4. पर स्त्री को माता मानों व स्त्री संग जुल्म, अत्याचार, अनाचार मत करो।
5. गाय, भैस, बकरी को हल में मत जोतों वह भी एक योनी का माता है।
6. किसी भी प्राणी का मांस खाना व हत्या करना छोड़ दो।
7. सभी प्रकार का नशा सेवन बंद करो।

त्रिस्तरीय सामाजिक संरचना नियम

समाज के लोग गुरू प्रतिनिधि की उपस्थिति में आपस में बैठकर सतनाम के संविधान नियमानुसार सामाजिक धार्मिक सेवा कार्यो के लिए योग्य लोगो का आम सहमति से प्रति ग्राम, जिला व राज्य स्तर पर गुरूगद्वी गुरूद्वारा के अनुसार स्वीकृत राजमंहत, जिला मंहत, दीवान, भण्डारी, छड़ीदार व पांच पंच प्रमुखो के पद हेतु योगयतानुसार नामांकन कर समाज के जगतगुरू, गुरूगद्वीनसीन सतनामी समाज/सतनामपंथ के पास मनोनयन के लिए सामाजिक बैठक का आम प्रस्ताव की अनुशंसा कर भेजे। गुरू बाबाघासीदास जी की सामाजिक व न्यायिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने हेतु मानव समाज में सतनामधर्म के प्रणेता परम पुज्यनीय गुरू बाबाघासीदास जी के उत्तराधिकारी गद्वीनसीन तपस्वीगुरू अमरदास जी,बलिदानी राजागुरू बालकदास जी, प्रतापीगुरू आगरदास जी, गुरू अड़गड़िहादास जी, युवराजगुरू साहेबदासजी, वीरगुरू अगरमनदास जी, जगतगुरू अगमदास जी के बाद से जगतगुरू विजयकुमार जी, जगतगुरू रूद्रकुमार जी के द्वारा वर्तमान समय में राष्टीय, राज्य, जिला, ब्लाक, अठगंवा व ग्राम स्तर पर क्रमशः- राजमंहत, मंहत, दीवान, भण्डारी, छड़ीदार, पांच पंचप्रमुख व सामाजिक कार्यकर्ताओं की पद नियुक्ति व्यवस्था है।

सतनामपथ / सतमामधर्म / सतनामी समाज की प्रचलित सुत्रधार प्रणाली

क्रमांक पदनाम कार्यक्षेत्र कार्यकाल नियुक्ति के प्रकार
1 जगतगुरू/धर्माचार्य/ मार्गदर्शक/धर्मगुरू/गुरू सम्पूर्ण संसार आजीवनकाल सतगुरू,बाबाघासीदास जी के ही वंशज उत्तराधिकारी
2 राजमंहत /राजप्रधान राज्य स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
3 जिलामंहत/जिलाप्रधान जिला स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
4 तहसीलमंहत/प्रधान तहसील स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
5 भण्डारी ग्राम/पंचायत स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
6 छड़ीदार ग्राम/पंचायत स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
7 दीवान तहसील स्तर तयसीमा तक गुरू से संबधित परिवार
8 गुरूप्रवक्ता राज्य स्तर आजीवन/तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
9 सामाजिक कार्यकर्ता अठगंवा स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
10 पंच मुहल्ला स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
11 पंचप्रमुख ग्राम/पंचायत स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
12 सेवादार धर्मस्थली स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित
13 गुप्तचर तहसील स्तर तयसीमा तक गुरू के द्वारा मनोनित

सतनाम पंथ/सतनामधर्म/सतनामी समाज के गुरू गद्वीनसीन जगतगुरू के मार्गदर्शन में समाज के नियमों व संविधान अनुसार मिले पद दायित्व का निर्वाहन कर (बारह प्रचलित सामाजिक संचालन व्यवस्था व संरचना) समाज की एकता व अखण्डता को बनाये रखने में इन सुत्रधारो की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रचलित बारह सुत्रधार गुरू व समाज के बीच की महत्वपूर्ण कड़ी होती है। जो गुरू के आदेश निर्देश व समाज की निति-नियम व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित कर समाज के सभी लोगों का विकास,उत्थान,पुरस्कार तथा नियम का विरोध या नकारनें पर दण्ड प्रक्रिया का प्रावधान रखा गया है। इसके साथ ही समाज में माफी, क्षमा, सजामुक्ती पर अपील व जाति मिलावा की प्रक्रिया है।

सतनाम के सार

1. सत्य - संतशिरोमणी गुरूबाबा घासीदास जी के सतनामधर्म के प्रत्येक अनुयायी सत्य को स्वीकार करेगा। क्योकि सत्य ही प्रकृति के पंच तत्व जल, थल, आकाश, हवा व आग में समाया है,और सत्य ही धर्म,व्रत,जीवन है। इस संसार में सत्य ही सार है।
2. गुरू - सतनामधर्म में गुरू प्रधान समाज,सतनामी समाज की रचना हुई है,। गुरू समाज का श्रेष्ठ मार्गदर्शक होता है।

जय सतनाम्